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कविता

तीसरा चेहरा

नरेंद्र जैन


हजार मील दूर
एक चाबुक
हवा में उछल रहा है
यहाँ दर्द के मारे मेरी देह
ऐंठकर नीली पड़ रही है
हजार मील दूर
एक नंगा चाकू
अँधेरे में खिलखिला रहा है
यहाँ
परत दर परत
मेरी चमड़ी उतर रही है
हजार मील दूर
कारागार में
एक फंदा झूल रहा है
कहीं
मेरी गर्दन खिंचकर
बेतरह लंबी हो रही है


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हिंदी समय में नरेंद्र जैन की रचनाएँ



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